" स्टेनली का डिब्बा 14 May 2011 Daily news in hindi"


नई फिल्म : स्टेनली का डिब्बा
कलाकार : अमोल गुप्ते , दिव्या दत्ता , मास्टर पार्थो
निर्माता : अमोल गुप्ते, निर्देशन : अमोल गुप्ते
गीत : अमोल गुप्ते
संगीत : हितेश सोनिक
सेंसर सर्टिफिकेट : यू / ए
अवधि : 98 मिनट


आमिर खान प्रॉडक्शन की तारे जमीं पर की रिलीज के वक्त अमोल गुप्ते पहली बार मीडिया की सुर्खियों में आए। दरअसल , आमिर ने अमोल की लिखी स्क्रिप्ट पर जब फिल्म बनाने का फैसला किया तब निर्देशन की कमान अमोल को सौंपी थी। फिल्म की शुरूआती शूटिंग की फुटेज देखने के बाद आमिर ने खुद निर्देशन की कमान संभाली। बेशक , अमोल के लिए उस वक्त यह जबर्दस्त झटका था , तभी उन्होंने अपनी अगली फिल्म को बच्चों पर फोकस करने का फैसला लिया। तारे जमीं पर की शूटिंग के दौरान अमोल की नई स्क्रिप्ट का काम भी लगभग पूरा हुआ और इस बार अमोल ने अपनी लिखी कहानी पर बनने वाली फिल्म के लिए प्रॉडक्शन कंपनी का सिलेक्शन भी अपने दम पर किया। इस फिल्म की शुरूआत और फिल्म का बैक ग्राउंड म्यूजिक क्लासरूम , टीचर्स का स्टाफ रूम आपको आमिर की फिल्म की याद दिलाएगा। इसके बावजूद अमोल ने बिना बॉक्स ऑफिस का मोह किए अपनी लिखी स्क्रिप्ट पर ऐसी फिल्म बनाई जो उन दर्शकों की कसौटी पर खरी उतरने का दम रखती है , जो नए सब्जेक्ट के साथ साथ एक्सपेरिमेंट सिनेमा के प्रशंसक हैं।

कहानी : करीब 10 साल का स्टेलनी ( पार्थो गुप्ते ) अक्सर अपने स्कूल की क्लास स्टार्ट होने से पहले स्कूल पहुंच जाता है। स्टेलनी की इस दुनिया में स्कूल के फ्रेंड उसके हमसफर हैं। स्टेनली क्लास के दूसरे स्टूडेंट्स में इस कद्र चहेता है कि क्लास का हर स्टूडेंट लंच में उसके साथ अपना खाने का डिब्बा शेयर करके खुश होता है। दूसरी और , स्कूल के हिंदी टीचर बाबू भाई वर्मा ( अमोल गुप्ते ) को यह बिल्कुल पसंद नहीं कि स्टेलनी अपना डिब्बा लाने की बजाय दूसरे स्टूडेंट्स का लंच बॉक्स शेयर करे। अब यह बात अलग है बाबू भाई कभी भूलकर भी अपना लंच बॉक्स लेकर नहीं आते। वह खुद कभी स्कूल के स्टाफ रूम में साथी टीचर्स के लंच बॉक्स में से जलेबी निकालकर उड़ जाते हैं। कभी हिंदी की क्लास लेते वक्त उन्हें किसी स्टूडेंट के लंच बॉक्स खुलने की जरा भी खुशबू आ जाए , तो झट उसके पास पहुंच जाते हैं। वर्मा जी अक्सर स्टेलिनी को लंच बॉक्स लेकर आने को टोकते हैं। जब वर्मा को लगता है स्टेलिनी पर उनकी बातों का कोई असर नहीं पढ़ रहा है , तो वह उसे बिना लंच बॉक्स लिए स्कूल नहीं आने को कहते है।

ऐक्टिंग : पूरी फिल्म हिंदी टीचर वर्मा जी यानी अमोल गुप्ते और स्टेलिनी पर टिकी है। बेशक एक्टिंग के मामले में दोनों सेर पर सवा सेर साबित हुए है। दूसरों के लंच बॉक्स पर नजर रखने और खाने का डिब्बा खुलते ही दूर से ही उसके अंदर रखे फूड आइटम्स का पता लगा लेने वाले टीचर के रोल में अमोल गुप्ते का कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता था। लीड रोल में मास्टर पार्थो का जवाब नहीं , स्टार्ट टू फिनिश पार्थो पर फिल्म में छाए है। अन्य भूमिकाओं में रोजी के रोल में दिव्या दत्ता ने अपने रोल को बस निभा भर दिया है।

डायरेक्शन : बतौर डायरेक्टर अमोल ने फिल्म में कुछ ज्यादा ही अंग्रेजी डायलॉग का सहारा लिया है। मिशनरी स्कूल की पृष्ठभूमि में केंद्रित इस कहानी और पात्रों का होना इसकी शायद इसकी वजह हो सकता है। बॉक्स ऑफिस पर कमाई की चाह में अमोल ने बेफिजूल चालू मसालों को फिल्म में फिट नहीं किया । फिल्म मल्टीप्लेक्स क्लास और मुख्य सेंटरों के दर्शकों की कसौटी पर ज्यादा खरी उतर सकती है।

संगीत : शान का गाया गाना ' लाइफ बहुत सिंपल है ', और शंकर महादेवन की आवाज में ' नन्हीं सी जान ' का फिल्मांकन बहुत अच्छा बन पड़ा है। वहीं , फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक कई बार ' तारे जमीं पर ' की याद दिलाता है।

क्यों देखें : अगर आपने तारे जमीं पर देखी है तो इस फिल्म को एकबार देखिए , बेशक इस फिल्म के साथ ग्लैमर नगरी का कोई नामी स्टार नजर नहीं आएगा , लेकिन आपको स्टेनली और बाबू भाई वर्मा की बेहतरीन अदाकारी के साथ छोटे बड़े शहरों के स्कूलों को कुछ नजदीक से जानने का मौका मिलेगा।

Post a Comment

0 Comments