रेलवे की वित्तीय स्थिति बदतर


नई दिल्ली। वित्तीय संकट का सामना कर रहे रेलवे ने निजी सार्वजनिक भागीदारी [पीपीपी] के तहत संचालित होने वाली सभी परियोजनाओं पर रोक लगा दिया है जिसमें पश्चिम बंगाल के कचरापाड़ा और बिहार के मधेपुरा एवं मरहौरा स्थित प्रस्तावित संयंत्र शामिल हैं।
कचरापाड़ा में ईएमयू कोच संयंत्र, मरहौरा में डीजल इंजन संयंत्र और मधेपुरा में इलेक्ट्रिक इंजन संयंत्र से जुड़ी खरीद जरूरतों को पूरा करने के लिए रेलवे को इन तीन परियोजनाओं के लिए प्रति वर्ष 8,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ता।
रेल मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि वर्तमान परिस्थितियों में रेलवे को अपने अश्वासनों की प्रतिबद्धता को पूरा करने में कठिनाई महसूस हो रही है। उन्होंने कहा कि धन की कमी के मद्देनजर रेलवे ने निजी सर्वजनिक भागीदारी के तहत चलने वाले इन परियोजनाओं पर अस्थाई तौर पर रोक लगाई है और एक समिति का गठन किया है जो पीपीपी के तहत संचालित परियोजनाओं के लिए धन जुटाने और अपना उत्पादन इकाई स्थापित करने के रास्तों की तलाश करेगा।
काचरापाड़ा, मरहौरा और मधेपुरा में निजी सार्वजनिक भागीदारी के तहत संचालित होने वाले इन तीन परियोजना के लिए बोली प्रक्रिया में मुख्य रूप से अमेरिका और यूरोप की बहुराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हैं।
रेलवे के सूत्रों ने बताया कि इस संबंध में गठित समिति में रेलवे के छह अधिकारियों को शामिल किया गया है जो इस बात का पता लगाएंगे कि खरीद अनुबंध के आश्वासन को किस प्रकार से पूरा किया जाए क्योंकि रेलवे के पास अपनी उत्पादन इकाई भी है। अगर इन आश्वासनों को पूरा किया जाता है तो रेलवे के पास अपनी इकाई के लिए काफी कम धन बचेगा।
वैगन, कोच और इंजन की खरीद के लिए रेलवे सालाना 15,000 करोड़ रुपये से 18,000 करोड़ रुपये का व्यय करता है।
सूत्रों ने बताया कि अगर इन तीन परियोजनाओं के लिए 8,000 करोड़ रूपए रख दिए जाते हैं तो अपनी उत्पादन इकाई और वैगन की खरीद के लिए काफी कम धन बचेगा।
समिति रेलवे कोष के संबंध में विरोधाभाषी मांगों की पड़ताल भी करेगी। समिति को अपनी सिफारिशें पेश करने के लिए 15 दिनों का समय दिया गया है। इसलिए रिपोर्ट आने तक इन परियोजनाओं पर अस्थाई रोक लगाई गई है।

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