जया-ममता: मंजिल एक, लेकिन सफर अलग-अलग

रेशमी आर. दासगुप्ता
नई दिल्ली।। देश में महिला मुख्यमंत्रियों के क्लब की तादाद जल्द बढ़कर दोगुनी हो जाएगी। क्या जे. जयललिता और ममता बनर्जी की शख्सियत में काफी समानताएं हैं या फिर दोनों का व्यक्तित्व बिल्कुल अलग है?

इस सवाल का जवाब खोजना मुश्किल है। दोनों महिलाओं ने शादी नहीं की है। दोनों ब्राह्माण हैं। दोनों का स्वभाव अप्रत्याशित है। कुछ लोग उन्हें ड्रामा क्वीन कहते हैं। दोनों ही व्यक्ति विशेष पर केंद्रित राजनीतिक दलों की अगुवाई करती हैं। दोनों का साड़ी पहनने का अपना खास अंदाज है। लेकिन, जयललिता और ममता के बीच दिखने वाली समानताएं केवल कागजी हैं। क्योंकि, उनके पीछे पूरी तरह अलग बैकग्राउंड और राजनीतिक विरासत की इबारत लिखी है।

देश के सतरंगी सियासी गठबंधन ने पूरी तरह विरोधाभास रखने वाली क्षेत्रीय महिला नेताओं को कई बार सामने लाकर खड़ा किया है। मिट्टी के करीब मानी जाने वाली महारानी वसुंधरा राजे से लेकर आक्रामक रुख के लिए मशहूर संन्यासिन उमा भारती तक, और उत्तर प्रदेश में हैंडबैग के साथ चलने वाली तेज-तर्रार मायावती से लेकर शालीन शीला दीक्षित तक, हमने कई तरह के रंग देखे हैं। लेकिन 2011 के बैलेट बॉक्स ऑफिस ब्लॉकबस्टर की लीडिंग लेडी (जयललिता और ममता) सब कुछ हो सकती हैं, लेकिन अतीत में बिछड़ने वाली और एक सा व्यवहार वाली दो महिलाएं नहीं।

अंतर बहुत हैं, जिनमें से कई साफ दिखते भी हैं। जयललिता बढ़िया प्रशासक साबित हुई हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में उनके दो कार्यकाल से यह साबित हुआ है। ममता ने अभी राज्य सरकार के नेता में रूप में इम्तहान नहीं दिया है और केंद्रीय मंत्री के नाते उनका प्रदर्शन आकर्षक नहीं रहा है। दूसरा जयललिता, अपनी चिर-प्रतिद्वंद्वी डीएमके की तरह बड़े पूंजीपतियों को लेकर आसान और संतुलित रणनीति रखती हैं और विकास में उनकी महत्ता भी स्वीकार करती हैं। लेकिन बंगाल में हालात उलट हैं, जहां सीपीएम और ममता दोनों ने बड़े पूंजीपतियों के खिलाफ तीखे विरोध-प्रदर्शन की योजना पर अमल किया है।

जयललिता भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझती रही हैं, लेकिन ममता को 'पाक-साफ' कहा जाता है। उनकी तारीफ करनी चाहिए कि सियासत में इतने लंबे करियर के बावजूद उन पर भ्रष्टाचार का अदना सा भी आरोप नहीं लगा। और जयललिता अपनी प्रतिस्पर्धी डीएमके की तरह भ्रष्टाचार के घेरे में कई बार आई हैं।

कहानी यही खत्म नहीं होती। जयललिता और ममता कई दूसरी अहम चीजों के मामले में भी अलग हैं। कोलकाता के व्यस्त इलाके कालीघाट से आने वाली 56 वर्षीय बांग्ला महिला ममता और मैसूर में पैदा होने के बाद चेन्नै के पोज गार्डन की शान बढ़ाने वाली 63 वर्षीय पूर्व ऐक्ट्रेस जयललिता के बीच कोई गलतफहमी नहीं हो सकती। जयललिता के उच्चारण में उनकी कॉन्वेंट शिक्षा का असर दिखता है। कम्युनिस्ट दायरे से बाहर आने वाले दूसरे लोगों की तरह ममता के लिए शिक्षा के मायने किसी अच्छे अंजाम से नहीं रहे। यह डिग्री जुटाने का टाइमपास काम था, जो बिना 'काडर' छाप के किसी भी तरह की आजीविका का वादा नहीं करता। ममता ने इतिहास, शिक्षा और कानून में डिग्री हासिल कीं।

जब जयललिता तमिल सिनेमा के शीर्ष पर थीं, उस वक्त ममता वाम दलों की गिरफ्त वाले राज्य में कांग्रेस की आक्रामक कार्यकर्ता की तरह अपना करियर बनाने में जुटी थीं। दोनों ने मंजिल तक पहुंचने के लिए कई मुश्किलें झेली हैं, लेकिन मुश्किलों का चेहरा अलग-अलग रहा। जयललिता को एम. जी. रामचंद्रन के रूप में मेंटर मिला, लेकिन ममता की ऐसी किस्मत नहीं थी। 1984 में दिग्गज कम्युनिस्ट सोमनाथ चटर्जी को बेदखल कर उन्होंने लोकसभा तक की राह बनाई थी। 1989 के चुनाव को छोड़कर वह लगातार जीतीं। लेकिन उलटते-पलटते हालात ने उन्हें 1997 में तृणमूल कांग्रेस की नींव रखने पर मजबूर किया।

Post a Comment

0 Comments