आरुषि मामले में सीबीआइ को फटकार


गाजियाबाद [जासं]। बहुचर्चित आरुषि हत्याकांड में क्लोजर रिपोर्ट पर विशेष अदालत ने सवाल खड़े किए हैं। सीबीआइ से पूछा है कि क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने में जल्दबाजी की आखिर वजह क्या है। आधी-अधूरी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने पर जांच एजेंसी को फटकार भी लगाई है।
आरुषि मामले में जांच बंद करने के लिए सीबीआइ की अर्जी यानी क्लोजर रिपोर्ट पर यहां विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रीति सिंह की अदालत में सोमवार को सुनवाई हुई। अदालत ने सीबीआइ से पूछा कि आखिर इस क्लोजर रिपोर्ट को दाखिल करने की इतनी क्या जल्दी पड़ी थी? अवकाश के बावजूद रिमांड मजिस्ट्रेट की अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी गई! इतना ही नहीं क्लोजर रिपोर्ट में पर्याप्त तथ्य भी नहीं हैं।
इस पर सीबीआइ के अधिवक्ताओं ने कहा कि दिसंबर में लक्ष्य पूरा करना होता है, इसलिए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करनी पड़ी। जहां तक रिपोर्ट से संबंधित अन्य तथ्यों की बात है तो उसे विवेचनाधिकारी अदालत में पेश करेंगे। इसके बाद अदालत ने अगली कार्रवाई के लिए भोजन के बाद का समय निर्धारित कर दिया। इसके बाद दोपहर दो बजे आदेश पारित किया।
अब सुनवाई सात को
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सीबीआइ ने क्लोजर रिपोर्ट में पर्याप्त तथ्य पेश नहीं किए हैं। इसलिए विवेचनाधिकारी संबधित तथ्यों के साथ सात जनवरी को अदालत में पेश हों। साथ ही प्रथम सूचना दाता डॉ. राजेश तलवार को भी नोटिस जारी किए जाएं।
तलवार की अर्जी खारिज
आरुषि के पिता डा. राजेश तलवार व मां डा. नूपुर तलवार की ओर से अदालत में अधिवक्ता सतीश टमटा तथा प्रवीन राय ने अर्जी दाखिल की। जिसमें कहा गया कि आरुषि हत्याकांड में सीबीआइ ने मामले को बंद करने के लिए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की है। यह हत्याकांड एक जघन्य अपराध है। इस मामले को बंद करने की इजाजत न दी जाए और सच्चाई सामने आनी चाहिए। उनका प्रार्थना पत्र न्याय हित में है। अदालत ने प्रार्थना पत्र को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि अभी मामले में इस तरह का प्रार्थना पत्र सुनवाई योग्य नहीं है।
सीबीआइ के पास जल्दबाजी का जवाब नहीं
नई दिल्ली [नीलू रंजन]। जांच में सुस्त रफ्तार के लिए बदनाम सीबीआइ के पास आरुषि हत्याकांड में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने की जल्दबाजी का कोई जवाब नहीं है। आखिरकार सीबीआइ निदेशक बनते ही एपी सिंह ने आरुषि मामले की जांच ढाई साल में ही बंद करने का फैसला क्यों कर लिया, जबकि जांच एजेंसी के पास कई ऐसे मामले लंबित हैं, जिनमें दस साल बाद भी न तो चार्जशीट और न ही क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की जा सकी है।
सीबीआइ के पास अर्से से लंबित ऐसे मामलों में सबसे अहम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी वी जार्ज का केस है। सीबीआइ ने 2001 में वी जार्ज के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज किया था, लेकिन 10 साल बाद भी न तो केस बंद कर रही है और न ही जार्ज के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर पा रही है। जांच एजेंसी का यही हाल छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी के मामले में भी है। जोगी ने 2003 के दिसंबर में मुख्यमंत्री रहते हुए भाजपा के नवनिर्वाचित विधायकों को खरीदने की कोशिश की थी। सीबीआइ ने तत्काल एफआइआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी। जांच के दौरान सीबीआइ को जोगी के खिलाफ तमाम सबूत भी मिल गए, लेकिन अभी तक जोगी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं की जा सकी है।
कई वरिष्ठ आइएएस अधिकारियों के खिलाफ भी सीबीआइ चार्जशीट दाखिल करने में सालों-साल लगाती रही है। 2001 बैच के आइएएस अधिकारी के नरसिंहा के खिलाफ सीबीआइ ने आरुषि हत्याकांड से चार महीना पहले यानी फरवरी 2008 में आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज किया था, लेकिन अब तक उसकी जांच पूरी नहीं हुई है।
वहीं उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ आइएएस अधिकारी महेश गुप्ता के खिलाफ चार्जशीट करने में सीबीआइ को नौ साल लग गए। उनके खिलाफ 1999 में एफआइआर हुई थी और 2008 में चार्जशीट पेश की गई। जाहिर है आरुषि हत्याकांड में ढाई साल के भीतर क्लोजर रिपोर्ट लगाने की जल्दबाजी का सीबीआइ के पास कोई जवाब नहीं है।

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